कौन हैं ब्रह्म?

ब्रह्म

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ब्रह्म: अनंतता की अनुभूति का प्रतीक

ब्रह्म, भारतीय धर्मों की महत्वपूर्ण और गहरी धारणा है जो आत्मा की अद्वितीयता और अनंतता को प्रमोट करती है। इस अद्वितीय और अद्वितीय तत्त्व के बारे में जानने के लिए हमें भारतीय दर्शन और धार्मिक परंपराओं का माध्यम चुनना होगा।


ब्रह्म का मतलब

ब्रह्म का अर्थ है 'अनंत' या 'अद्वितीय'। इसे अकेले शब्दों में व्याख्या करना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि यह एक अद्वितीय, अनंत और अनुभूतिकर धारणा है जिसे शब्दों में प्रकट करना मुश्किल हो सकता है। ब्रह्म का अर्थ है एकमेव अद्वितीय, यानि जो कुछ भी है, वह सब ब्रह्म में है और ब्रह्म ही में बसा हुआ है।


ब्रह्म का धार्मिक महत्व

ब्रह्म की धारणा भारतीय धर्मों के विभिन्न आध्यात्मिक परंपराओं में महत्वपूर्ण है, जैसे कि हिन्दू धर्म, जैन धर्म और वेदांत दर्शन। हिन्दू धर्म में, ब्रह्म ब्रह्मांड (जगत) का सर्वव्यापी, निराकार, और निर्गुण परमात्मा होता है। यह ब्रह्म आत्मा का स्वरूप भी है और इसे ब्रह्म के साथ एक अंशी के रूप में विचार किया जाता है।


जैन धर्म में भी ब्रह्म की अनुभूति और आत्मा की मोक्ष की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जैन धर्म में ब्रह्म को 'परमात्मा' या 'सिद्धचैतन्य' कहा जाता है, और यह आत्मा के अद्वितीयता का प्रतीक होता है।


ब्रह्म का दर्शन

ब्रह्म का दर्शन आत्मा के अद्वितीयता की अनुभूति के रूप में होता है। यह ध्यान, मेधा, और आध्यात्मिक साधना के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। ब्रह्म का दर्शन व्यक्ति को अंतरात्मा की अद्वितीयता की अनुभूति कराता है, जिसका परिणाम आत्मा का मोक्ष होता है।


ब्रह्म का साक्षात्कार

ब्रह्म का साक्षात्कार आत्मा के उन्नति और सच्चे सुख की प्राप्ति का माध्यम होता है। इसके द्वारा, व्यक्ति अपने आत्मा में वास्तविकता को पहचानता है और सभी भिन्नताओं के पीछे एक एकत्रता को देखता है 



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